Main Word of Library Science in Hindi (Library Classification)#2

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Main Word of Library Science in Hindi (Library Classification)

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श्रृंखला(Chain) – अधीनस्थ विषयों या विचारों के समूह को लगातार एक के बाद एक को व्यवस्थित करने की प्रक्रिया को श्रृंखला कहते हैं।

पंक्ति में ग्राह्यता (Hospitality in array) – अंकन का वह गुण जो अपनी पंक्ति में नए अंकों को सम्मिलित करने की अनुमति देता है उसे पंक्ति में ग्राह्यता बोलते हैं।

श्रृंखला में ग्राह्यता (Hospitality in Chian) – अंकन का वह गुण जो अपनी श्रृंखला में उप वर्गों के किसी भी अंक को सम्मिलित करता है उसे हम श्रृंखला में ग्राह्यता बोलते हैं।

सामान्य वर्ग (Generalia class) – पढ़ने योग्य ऐसी सामग्री जिन्हें किसी वर्ग में वर्गीकृत ना किया जा सके उदाहरण के तौर पर इनसाइक्लोपीडिया, जर्नल, बिबलियोग्राफी इत्यादि। इनको समान रूप से सभी विषयों के साथ वर्गीकृत किया जा सकता है।

चित्र-दीवार सिद्धांत (Wall-Picture Principle) – किसी भी चित्र के परिकल्पना के लिए पहले दीवार की परिकल्पना जरूरी है उसी प्रकार अगर किसी विषय के विचार और इस प्रकार है की से संबंधित विचार तब तक क्रियाशील नहीं हो सकता जब तक विचार क्रियाशील नहीं है। इसी कारण  को  से पहले रखा जाना चाहिए।

पूर्ण-अंग सिद्धांत (Whole-Organ Principle) –  इस सिद्धांत में जीव के संपूर्ण शरीर के आधार पर उसके अवयवों की कल्पना की जा सकती है। इसलिए ऐसे विषय जिसमें उसके अवयव संपूर्ण पर आधारित हो तो क्रम में सबसे पहले संपूर्ण भाग  को तथा फिर उसका अवयव रखना चाहिए।

गाय-बछड़ा सिद्धांत (Cow-Calf Principle) –  इस सिद्धांत में विषय के पक्ष को आपस में अलग नहीं किया जा सकता जबकि वह अलग अलग पक्ष में हैं तो भी उसे एक ही आवर्तन में रखा जाता है। जिस प्रकार गाय और बछड़े को अलग नहीं कर सकते उसी प्रकार इसमें विषय के पक्ष को आपस में नहीं कर सकते हैं। जैसे Function of the Govt. of Haryana इसमें Govt. and Haryana अलग अलग एकल तो भी उसे अलग नहीं किया जा सकता।

कार्य एवं क्रिया-कर्ता उपकरण सिद्धांत (Act and-Action-Actor-Tool Principle) –  यह सिद्धांत कार्य एवं क्रिया-कर्ता की तरह कार्य करता है। इसको हम एक उदाहरण से समझते हैं: यदि किसी विषय का पक्ष B,पक्ष C के द्वारा पक्ष D को साधन के रूप में प्रयोग कर पक्ष A पर क्रिया करता है।

पृथक्करण का उपसूत्र (Canon of Dierentiation) – इस प्रकार के उपसूत्र में ज्ञान जगत को विशेषता के आधार पर दो भागों में बांटते हैं।

साहवर्तिता का उपसूत्र (Canon of Concomitance)– इस उपसूत्र में वर्गीकरण के लिए दो विशेषताएं ऐसी नहीं होनी चाहिए जो सहवर्ती हो अर्थात किसी भी विषय या एकल का वर्गीकरण से उत्पन्न वर्ग या एकल एक समान नहीं होनी चाहिए।

संबद्धता/प्रासंगिकता का उपसूत्र(Canon of Relevance) – इस प्रकार के उप सूत्र में वर्गीकरण के लिए उन विशेषताओं को चुनना चाहिए जो सपष्ट और निर्धारित हो। अर्थात वर्गीकरण के लिए जिस विशेषताओं को आधार बनाया जाता है वह उद्देश्यों के अनुरूप होनी चाहिए। जैसे – कोलन क्लासिफिकेशन में मुख्य वर्ग साहित्य में लेखक के जन्म वर्ष को आधार बनाया गया है।

निर्धायता का उपसूत्र/अभिनिश्चितता का उपसूत्र(Canon of Ascertainability) – इस क्षेत्र में जिस विशेषता को ध्यान में रखकर वर्गीकरण किया जाता है वह वर्गीकरण के उद्देश्य को पूरा करने में सफल होना चाहिए अर्थात सुनिश्चित होना चाहिए।

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